भगवान परशुराम और कानपुर आसपास
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प्रस्तुति-गीतेश अग्निहोत्री/सुनाद न्यूज
हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। इस तिथि को अनेक व्रत, व पर्व मनाए जाते हैं उनमें से एक है भगवान परशुराम का जन्मोत्सव । शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है।
परशुराम अमर माने गए हैं -यह श्लोक देखिये –
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभिषण:
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः।
अर्थात अश्वत्थामा,राजा बलि , व्यास , हनुमान , विभीषण , कृपाचार्य और परशुराम ये सातों विभूतियाँ अमर हैं। सभी सप्त चिरंजीवी आज भी समाखज में विविध रूप से विद्यमान है और उनकी अनुभूति हम लोग समय-समय पर करते रहते हैं । चाहे वह भगवान हनुमान के चमत्कार हो या अश्वत्थामा द्वारा शिव पूजन के प्रसंग अथवा लोक नाट्य विधा परशुरामी में भगवान परशुराम के रौद्र रूप दर्शन व विद्वत्ता का प्रदर्शन के रूप में देखते हैं ।
आओ जाने, कौन थे भगवान परशुराम ? और्व नाम से प्रसिद्ध भृगुपुत्र ऋचीक के तपोबल व गाधिपुत्री सत्यवती के गर्भ से ब्रह्मवेत्ताओ में श्रेष्ठ महा यशस्वी महर्षि जमदग्नि का आविर्भाव हुआ । महर्षि जमदग्नि का विवाह रेणु नरेश की पुत्री रेणुका (द्वितीय नाम कामली) के साथ हुआ । रेणुका के गर्भ से ही महातपस्वी एवं विद्वान जमदग्नि पुत्र भगवान परशुराम का जन्म हुआ । भगवान परशुराम अत्यंत कठोर स्वभाव के क्षत्रियकुल संघारक धनुर्वेद प्रवीण एवं समस्त विद्याओं में पारंगत प्रज्वलित अग्नि के समान बताया गया है । उन्हें भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार माना गया। कार्तवीर्यार्जुन की भुजाओं के काटने वाले व श्री राम से धनुष की प्रत्यंचा चढ़वाने वाले भगवान परशुराम ने श्री कृष्ण के साथ भी गोमंतक पर्वत की यात्रा की थी ।
घाटमपुर तहसील के बेहटा के जगन्नाथ मंदिर की दशावतार प्रतिमा में भी भगवान परशुराम भी है शामिल
भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के दशावतारों में शुमार किया जाता है । अत:भगवान विष्णु की प्राप्त प्रतिमाओं में जिनमें दशावतार का अंकन मिलता है उनमें परशुराम का भी अंकन प्राप्त होता है । दशावतार की प्रतिमाएं जिनमें परशुराम अंकित है ऐसी प्रतिमाएं छठी सातवीं शताब्दी से लेकर सोलहवी सत्रहवीं शताब्दी तक प्राप्त होती हैं । उदाहरण के लिए घाटमपुर तहसील के बेहटा के जगन्नाथ मंदिर की दशावतार प्रतिमा में भी भगवान परशुराम अंकित है ।
भगवान परशुराम के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है कानपुर देहात का परसौरा
कानपुर जिले में रसूलाबाद तहसील के चित्तानेवादा को भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि के आश्रम और परसौरा ग्राम भगवान परशुराम के स्थान के रूप में जाना जाता है । कानपुर शहर में सर्वप्रथम वर्ष १९५६ में भगवान परशुराम की प्रतिमा गुप्तार घाट पर स्थापित की गई थी । इसके बाद कुछ वर्ष पूर्व ब्रजेंद्र स्वरुप पार्क मे परशुराम वाटिका में भगवान परशुराम की प्रतिमा स्थापित की गई ।
शिवदत्त लाल के अभिनय ने शिवली को दी नई पहचान
लोक नाट्य विधा परशुरामी मैं पंडित जमुना प्रसाद मिश्र भदरस ,पंडित चंद्रबली त्रिपाठी व पंडित शिवदत्त लाल अग्निहोत्री मयंक शिवली, पंडित व्यास नारायण बाजपेई गजनेर, पंडित संकटाप्रसाद त्रिपाठी बिधनू, पंडित कृष्ण मुरारी त्रिपाठी गहलों, पंडित गोरेलाल त्रिपाठी रायपुर ,डॉ राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी पड़री आदि प्रमुख परशुराम लब्ध प्रतिष्ठि हुए हैं ।
संकलन अनूप कुमार शुक्ल
महासचिव कानपुर इतिहास समिति कानपुर