जब महान सन्यासी भाष्करानंद का स्वामी विवेकानंद से हुआ मिलन

स्मरण :–स्वामी विवेकानन्द जयंती पर विशेष

“डरो मत सामना करो” ….

सुनाद न्यूज,12 जनवरी 2024। स्वामी विवेकानन्द जी ने वाराणसी प्रवास मे अपने गुरू द्वारा जो नाम सुने थे उनसे भेंट करने को वो निकल पड़े ….कई दिनो के श्रम के बाद भी तैलंग स्वामी के योगनिद्रा मे होने के कारण वार्ता न हो सकी | अत: स्वामी विवेकानन्द जी दुर्गाकुण्ड स्थित आनन्दबाग मे विश्वविख्यात संत स्वामी भास्करानन्द सरस्वती जी के दर्शन को जा पहुँचें …. स्वामी भास्करानंद जी भक्तों को उपदेश दे रहे थे उन्होंने तरूण संत की परीक्षा के लिये काम व कंचन का प्रसंग ला कर बोले काम व कांचन को अब संत भी नहीं छोड पा रहे हैं।स्वामी विवेकानन्द जी उठ कर बोले नहीं संत द्वारा काम कांचन परित्याग ही उसका आभूषण हैं उसकी कड़ी मे मेरे गुरुदेव हैं। स्वामी जी की निर्भीकता से प्रभावित हो स्वामी भास्करानन्द जी ने कहा कि इनके कंठ मे सरस्वती हैं ये शीघ्र ही विश्व प्रसिद्ध होगे।यही हुआ स्वामी विवेकानन्द जी ने आभार व्यक्त करते हुए संस्कृत मे दो पत्र लिखे। स्वामी विवेकानन्द जी ज्यों ही आनन्दबाग से बाहर निकले तो उन्हे बन्दरो ने दौडा लिया स्वामी जी आंगे बन्दर पीछे। अचानक आनन्दबाग के द्वार की तरफ से आवाज आई डरो मत सामना करो | स्वामी जी रुक गये और बन्दरो की अोर मुड़े तो बन्दर भी पीछे भागने लगे | इस कौतुक पूर्ण शिक्षाप्रद घटना के पीछे भी स्वामी भास्करानन्द सरस्वती जी थे।

(स्वामी भास्करानन्द सरस्वती जी मैथा कानपुर के थे सन्यास जीवन मे आनन्दबाग दुर्गाकुंड वाराणसी मे प्रवास किया। संकलन-अनूप शुक्ला

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