भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद की जयंती 3 दिसंबर पर हर वर्ष अधिवक्ता दिवस मनाया जाता है
बाबू राजेन्द्र प्रसाद पेशे से अधिवक्ता थे और भारत रत्न भी थे।अधिवक्ता दिवस की महत्ता सिर्फ इसलिए नहीं है। कि स्वतंत्रता आंदोलन में अधिवक्ताओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है बल्कि इसलिए भी है कि अधिवक्ता वृत्ति संसार का सबसे गरिमापूर्ण पेशा है।
आज वकालत का पेशा भले ही नेम-फेम का हो गया हो ,निरा धनार्जन का साधन बन गया है लेकिन वकालत धन के मामले में संपूर्ण योग्यतावादी विचार देती है अर्थात जो जितना अधिक योग्य उतना धनवान और सफल।
धनार्जन के इस दौर में भी अधिवक्ता आज भी मानवतावादी विचारों और तथा मानवीय स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है
सारी न्याय व्यवस्था अधिवक्ताओं की ‘ड्राफ्टिंग , प्लीडिंग और कंवेयन्सिंग ’ पर टिकी हुई है।यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि न्याय मिल ही इसलिए रहा है क्योंकि अधिवक्ता उपलब्ध है।
आदिमानव युग से लेकर सभ्यता के विकास तक और सभ्यता के विकास से लेकर ” विधि का शासन ” संकल्पना तक एक न्याय व्यवस्था समाज में रही है जिसमें वंचितों और याचकों का पक्ष रखने वाले लोग रहें हैं
संसार में जब तक न्याय व्यवस्था रहेगी , अधिवक्ताओं की महत्ता रहेगी।समाज की प्रगति का अस्तित्व न्याय व्यवस्था से और न्याय व्यवस्था की प्रगति अधिवक्ताओं की क्षमता पर निर्भर करती है।
अधिवक्ता अधिनियम 1961 ने अखिल भारतीय विधिज्ञ परिषद का गठन
स्वतंत्र भारत में अधिवक्ताओं के पंजीयन और नियमों-विनियमों के लिए अधिवक्ता अधिनियम 1961 ने अखिल भारतीय विधिज्ञ परिषद के गठन का प्रावधान किया है। बार कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा अधिवक्ताओं के वृत्तिक आचार , अधिवक्ताओं की जवाबदेही और शिष्टाचार संबंधी लीगल इथिक्स बनाई गई है।इसलिए अधिवक्ताओं का न्यायालय और मुवक्किल के प्रति कुछ कर्तव्य भी बनता है।अधिवक्ता न्यायालय के समक्ष उपस्थिति के समय शिष्ट और सभ्य आचरण प्रस्तुत करे किंतु अधिवक्ता को न्यायिक अधिकारियों के समक्ष खुशामद की मुद्रा में नहीं रहना चाहिए क्योंकि अधिवक्ता स्वयं “ऑफिसर ऑफ कोर्ट ” होता है और यदि कोई न्यायाधीश अधिवक्ताओं के विरुद्ध निजी टिप्पणी करता है या कोर्ट में आपा खो देता है तो उसके विरुद्ध भी अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है।नियम तो यह भी है कि कोई अधिवक्ता यदि किसी संगठन , संस्था , निगम या कार्यकारिणी का सदस्य है तो वह ऐसे संगठन के पक्ष या विरोध में किसी न्यायालय के समक्ष उपस्थिति नहीं होगा।नियम यह भी है अधिवक्ता को विज्ञापन नहीं करना चाहिए।
विधिशास्त्र की तमाम सूक्तियों में से एक है ! “ वादकारी का हित सर्वोपरि ”
अधिवक्ता अपनी अवस्थित ,वाद की प्रकृति व वादकारी की हैसियत के अनुसार फीस लेकर अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा निर्भय होकर करे।अधिवक्ताओं को वृत्तिक आचार – व्यवहार का सदैव पालन करना चाहिए।एक बार जब मुवक्किल अपने मामले की बागडोर आपको सौंप देता है तब उसकी जीत-हार ,लाभ-हानि और यश-अपयश आपसे जुड़ जाता है।
अधिवक्ता का व्यवसाय बड़ा ही चुनौतीपूर्ण है
यहां सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक सुरक्षा है ,,, अपने मुवक्किल और काम के प्रति निष्ठा व ईमानदारी से आप इस चुनौती से पार पा सकते हैं।
प्रस्तुति व संकलन- राजीव दीक्षित,अधिवक्ता,कानपुर देहात