कानपुर का लब्ध प्रतिष्ठ शक्ति पीठ माँ तपेश्वरी देवी
आनन्दकन्दां भुवनेश्वरीं तां,
ओंकाररूपां तरलायताक्षीम ।
पाशांकुशाभीति वर प्रदात्रीं ,
तपेश्वरीं वंशधरां नमामि ।।
रामायण कालीन इतिहास को समेटे भगवती तपेश्वरी देवी का मन्दिर कनपुरियों की श्रद्धा व आस्था के प्रमुख शक्तिपीठों मे उर्ध्व स्थान पर है । मान्यता है कि त्रेतायुग मे भगवती सीता अयोध्या से निर्वासित हो कर ब्रह्मावर्त (बिठूर) मे महर्षि बाल्मीकि के आश्रम मे प्रवास किया था। उसी समय अरण्यविहार के दौरान भगवती सीता ने जिन ईश्वरी देवी को प्रतिष्ठित कर तप व साधना की थी उन्हें ही बाद मे माँ तपेश्वरी देवी की संज्ञा भक्तों द्वारा दी गयी । एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवती पार्वती जब अपने कठोर तप से ईश्वर (शिव) को प्राप्त किया तब उन्हें भी भगवती तपेश्वरी नाम मिला।
एक श्रुति आख्यान भी प्रचलित है कि बर्रा गांव के लठुआ बाबा की बारह कन्यायें थी । जिसमे सबसे बड़ी जुही की बारा देवी थी उनके विवाह के समय पिता के अनुचित व्योहार से अप्रसन्न हो सभी बहिनें पाषाण हो गयी । उनमे से तपेश्वरी देवी , माँ बुद्धा व जंगली देवी है ।
भगवती तपेश्वरी देवी की मुख्य प्रतिमा त्रय पिण्ड रूप मे विद्यमान है । कानपुर का इतिहास, भाग-1 (1950 ई ) के मुताबिक “पटकापुर की ग्राम देवी तपेश्वरी देवी है जिनके मन्दिर की गणना शहर के प्रसिद्ध देवस्थानों मे है। तपेश्वरी देवी के मंदिर मे पहले प्रतिमा के स्थान पर चक्की के पाट के टूटे हुए भाग रक्खे रहते थे और लोग उन्ही का पूजन करते थे। इन पाटो की पूजा से यह प्रकट होता है कि यह मन्दिर एक गांव का मन्दिर था और बहुत प्राचीन है । कानपुर इतिहास समिति के महासचिव अनूप शुक्ला ने बताया कि कानपुर शहर मे भगवती तपेश्वरी देवी के प्रति लोक मे बहुत आस्था व श्रद्धा का भाव हैं उक्त पीठ शहर का जीवन्त सिद्ध व जाग्रत शक्तिपीठों मे शुमार किया जाता है । वासन्तिक व शारदीय नवरात्रोँ मे भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और भारी मेला भी जुड़ता है । लोकगीतों मे भी भगवती तपेश्वरी का आवाहन किया जाता हैं ।